कनकप्रभा साधना

 कनकप्रभा  साधना 



            यदि कार्तिक माह के  किसी भी विन से प्रारम्भ कर  तीस दिनों तक नियमित रूप से की जाय हो श्रेष्तम माना गया अन्यथा किसी भी माह के शुक्ल पंचमी से प्रारम्भ  किया जा सकता है, इसमैं कोई दोष नहीं, यह साधना लम्बी अवश्य हैं किस्तु जटिल नहीं। महत्व केवल इस बात का है कि. साधक इस महत्व पूरे एक माह में श्रद्धा पूर्वक सरलता और बहाचर्य से जीवन यापन करें, केवल एक समय ही भोजन करें कौर दूसरे समय फलाहार अथवा दुग्धाहार मैं, भूमि शयन करें और तामसिक विचारों से दूर रहे । अतिरिक्त कोई बंधन रहीं है। साधक आपने नित्य प्रति के जीवन को अथावत जी सकता है, व्यवसाय का कार्य कर सकता हैं, नौकरी पर जा सकती है, यातराएं कर सकता हैं लया भीतिक जीवन के लिए जी कुछ भी आवश्यक है. उसे करने में कोई वोप नहीं।

                         |साथना विधान

             संगल, शनि ऐवं रविवार कों छोड़कर जिस विन भी. यह साधना प्रारम्भ करें उस विन साधना कहे स्वच्छ और साफ हो, श्वेत आसन अथवा लाल रंग का उनी आसन बिछाएं और एक पात्र में गणपति विग्रह रख. उनका पूजन केरार, अक्षतपुष्य से करें। स्वस्ति पाठ करें -

सुमुस्बश्बेंक वन्तश्वत कविलों मजकर्गक,

लम्बोइरश्य --------------

संग़ामें सकटे बेव विव्लस्तरय न जायते /

           इसके उपरान्त भूमि पर विकोण बना कर (जो आप केशर अथवा अच्मंध से बना सकते हैं) इसके ऊपर श्वते आसन बिछायँ (पढ़ते हुए तीन बार जल मुंह में डालें ).पृष्वी पर हाथ रखकर आसन शोधन करें.अब मूल साधना में  दीपक जला  के स्वापित करें और श्रर्थना करें कि - मैं |भगवती महालक्मी के हो शीध 'फलबायस स्टरुप कनक प्रभा की साधना मैं प्रवूत्त हो रहा हूं, भगवती महालमी मुझे दथां शीघ्र सफलता प्रदान करें और ऐसा क़दकर किसी श्रेष्ठ धातु के फाष में (ेप्ठ धातु के आमाव में पुष्प पंखुड़ियोँ पर) 'पारद शंख' स्वापित करें यदि आपके पास पहले से कोई फारव शंख हो और उस पर साधना की गई हो तत्र भी बह पूर्ण फलदायक |है।पारद तो एक ऐसी चैतन्य धातु है, निससे निर्मित कोई मी विगाह अपने आप मैं श्री युक्त होता हीं है और इसी विशेषता से कतक प्रथा की साधना पार शंख पर निश्चित रुप से फलवायी होती है क्योंकि पारद और स्वर्ण निमांण का मनि्ठ संबंध होता ही है। मूल प्रमाणिक विधि यहीं है।

                         इस  पारव शंख पर अष्टगंध से स्वस्तिक का |निर्माण करें, पखुड़ियां चढ़ाएं, और एक बड़ा दीपक शुद्ध थी का जलाकर भंगवत्ती सकी व उनके साकार प्रतीक बिराह रूप में पारद शंख का संयुक्त पूजन करें और प्रार्थना करें। देवी कनकप्रभा इस पारद शंख के रूप मैं मेंर घर मैं स्थायी | |महालक्ष्मी 'एवं शंख का पूजन सुगंधकुंकुम, अक्षत, पुष्प, पंचामृत, दुरध निर्मित नैवेदय, ताम्बूल एवं पुंगी फल (सुपारी) से करें । वक्षिणा रूप में इलायची एवं

लॉन समर्पित करें।  सिद्धि माला से निम्न मंत्र की 12 माला मंत्र जप सम्पन्न करें और मंत्र जप की समाफि पर एक |बार पुनः कर्पूर आरती से महालक्मी की आरती सम्प्रन कर.

             साधना मैं प्रयुक्त होने वाला मेंत्र हे --

            # ऊँ! ह्रौं ह्रं ह्रीं  कनकप्रभा मम गृहे आगच्छ स्थापय कट्॥

           इस साधना में यह आवश्यक  कि आपने प्रथम दिन जिस समय साधना प्रारम्भ की, उसी समय से नित्य प्रति साधनों प्रारम्भ करें!

 


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