रोग मुक्ति धन्वंतरि साधना

 रोग मुक्ति धन्वंतरि साधना 



              चिकित्सा विज्ञान इसको स्वीकार कर पाने असमर्थ है। वह मंत्र शक्ति के उपयोग को भी प्रकार से नहीं जान पाया है। मंत्र तथा साधना बल से जर्जर देह ने. भी अपने आपकों पूर्ण रूप से युवा बना लिया हैं।

            आज भी कुछ ऐसी साधनाएं हैं, जिनेकी सम्पत्न कर. आज भी संत्यासी जन शुन्य क्त्दराओं में रहने के बाद भी स्वस्थ रहते हैं। उनके पास ऐसी दी साधनाओं में एक अजितीय रोग मुक्ति हेतु साधना है। धन्वंतरि साधना। जिसे सम्पन्न करें व्यक्ति समस्त प्रकार के रोग से दूर रह सकता है। यह प्रेयोग हमारे ऋषियों की जोर से हमें बरदान स्वरूप प्राप्त हुआ है। 

              यह प्रयोग एक अत्यन्त उचवकीटि के योगी के द्वारा प्रास हुआ है। उन्होंने बताया; कि यह प्रयोग अत्यन्त विलसण प्रयोग है। ' धन्वंतरि अपने काल के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक रहे हैं। धन्वन्तरी ने अपने काल में भयानक से मंथानक रोग को समाप्त किया हैं। उन्होंने बह भी बताया हैं, कि अनेक ऋषियों, संन्यासियों ते इस साधना को सम्पक्न कर अपने सापको निरोगी रखा। 

             इस साधना को सम्प्त करने बाला व्यक्ति सदैव ही.प्रसन्न और जोशीला तथा उत्साहित रहता है, उसकी कार्यक्षमत्त बढ़ जाती है तंबां रोग उसके पास नहीं फटकते हैं।

                      साधना विधान

 

1--इस साधना दीपक जला  के  घन्वन्तरी का आवाहन करे

2-माला 21 हकीक माला

3- वस्त्र, आसन- पीले

            इस साधना को आप 'घनवन्तरी जयंती,फिर कृष्ण पक्ष की वयौदशी ब्लो यह साधना सम्पन्न करेयह एक दि की साधना है। यह साधना सम्पत्र करने वाला एक समय फलाहार लें। साधक यदि साधना सम्पत्त करने के लिये एक बार आसन बैठे, तो फिर जप पूर्ण करके ही आसन से उठे यदि बीच में उठे, नो पूनः मुंह घोकर दी आसन पर बैठे । साधना करते समय कम बोले स्थान पर साधना करे, उस स्थान को स्वच्छ करें तथा स्वयं भी स्नान कर पीले वस्त्र धारण करें। साधक स्वयं के लिये भी पौले रंग का उनी आसन ले ।घीं का दीपक का पूजन  विधि से करें।

                       21 हकीक माला से मंत्र जप करें

 

             मंत्र

             ॐ रं रुद्र रोगनाशाय धन्वंतयै फट


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