पापमोचनी त्रिपुर सुंदरी साधना

 पापमोचनी त्रिपुर सुन्दरी शक्ति साधना




 

                    जीवन में सारी वस्तुएं गौण हैं। सब वस्तुएं सहज ही सुलभ है लेकिन जीवन का लक्ष्य 'श्री की 'प्राष्ति और योग सिद्धि' है। जिसने अपने जीवन में श्री को योग के साथ सिद्ध कर लिया, वह व्यक्ति जीवन में पूर्ण बन जाता है और उसका जीवन इस संसार में धन्य-धन्य हो जाता है।'

 

                 श्री का तात्पर्य किसी भी रूप में धन नहीं हैधन तो उसका हजारवां हिस्सा है क्योंकि समुद्र मंथन के समय जो चौदह रल ऐरावत, कामधेनु,'कल्पवृक्ष, अमृत, धन्वन्तरी, उच्चैश्रवा, के साथ अंत में श्री" प्रकट हुई और इसी श्री का वरण स्वयंभगवान नारायण ने किया। यह श्री शक्ति स्वरूपा महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली सभी देवियों संयुक्त रूप थी। इसी श्री से संसार की शक्तियों की उत्पत्ति हुई। श्री शब्द का अर्थ लक्ष्मी रुप में ही प्रसिद्ध हैपरन्तु हारितायन संहिता ब्रह्माण्डपुराणोत्तरखण्ड आदि पुराणोतिहासों में वर्णित कथाओं क॑ अनुसार 'श्रीशब्द का मुख्यार्थ महात्रिपुरसु्दरी ही हैं। श्री महालक्ष्मी ने महात्रिपुर सुन्दरी की चिरकाल साधना कर जो अनेक वरदान प्राप्त किये हैं, उससे ही 'श्री' शब्द का अर्थ महालक्ष्मी होने लगा। अर्थात ' श्री' शब्द का महालक्ष्मी

अर्थ गौण है। श्री' अर्थात महात्रिपुर सुन्दरी की प्रतिपादिका विद्या मंत्र ही. श्रीविद्या' है।

                  'बाच्यं-वाचक को अभेद मानकर इस मंत्र की-अधिष्ठात्री देवी को श्री विद्या' भी कहते हैं।

 

               जब गुरु कृपालु होते हैं तो उनकी कृपा किसी भी प्रकार से नापी नहीं जा सकती। वे तो दयावान होकर अपने पूर्ण मन से शिष्य के पापों का क्षय कर उसे अपने समान बना लेते हैं। शिष्य के पापों का दया से ही  गुरु

उसे आशीर्वाद स्वरूप श्री-विद्या' रूपी रल प्रदान करते थे।



 

                  यह एक दिवसीय साधना है, इस साधना में स्फटिक माला

आवश्यकता होती है। इसके साथ ही लकड़ी के बाजोट पर बिछाने के लिए गुलाबी आसान तथा पहिंतने के लिए गुलाबी धोती आवश्यक है।

साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर पूर्व अथवा उत्तर दिशा में लकड़ी के बाजोट पर गुलाबी आसान 'बिछा कर, एक ताम्र प्लेट में त्रिकोण में दीपक

स्थापित करें, तथा धूप, दीप, पुष्प आदि से उसका पूजन करें। इसके परचात चार माला गुरु मंत्र का जप करें और मानसिक रूप से उनसे साधना में पूर्ण सफलता प्राप्ति का आशीर्वाद मांगे। महादेवी त्रिपुर सुन्दरी का मूल मंत्र प्रार्भ करने से पूर्व हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि आप निम्न उद्देश्य की पूर्ति के लिए साधना कर रहे हैं । तत्पर्चात.. स्फटिक माला से 5 माला मंत्र-जप सम्पल करें।

 

                     मंत्र

                              ॥ हीं कएईल हीं हसकहल हीं सकल हीं॥

साधना समाप्ति के पश्चात साधक ।। दिनों तक साधना सामग्री को अपने पूजा स्थान में रखें.

 

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